रूस और उत्तर कोरिया के बीच संबंध: एक नजर में रूस और उत्तर कोरिया के बीच संबंधों का इतिहास बहुत दिलचस्प है और इनका वैश्विक स्तर पर महत्व भी है। ये दोनों देश गणराज्य हैं, जो एशिया महाद्वीप पर स्थित हैं, और उनके बीच के संबंधों ने सदीयों से राजनीतिक, सांस्कृतिक, और अर्थव्यवस्था क्षेत्र में विशेष महत्व प्राप्त किया है। इस लेख में हम इन दोनों देशों के संबंधों की वर्तमान स्थिति और भविष्य के बारे में चर्चा करेंगे।
क्यों नजदीक आए Russia और North Korea ?
जब किन्हीं दो मुसाफिरों को एक ही रास्ते से जाना हो तो वे अक्सर एक दूसरे का हाथ थाम लेते हैं और यह मंजर वैश्विक भू राजनीति में भी बखूबी नज़र आता है। दरअसल, बीते दिनों रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन उत्तर कोरिया पहुंचे जहाँ उनका भव्य स्वागत किया गया। साथ ही दोनों देशों के बीच रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर भी किए गए। वहीं दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों का इतिहास करीब सात दशक पुराना है। इस दौरान दोनों देशों के आपसी रिश्ते को कई जटिलताओं का सामना भी करना पड़ा है। हालांकि संबंधों की गाड़ी फिर एक बार पटरी पर लौट रही है।
लेकिन इन सबके बीच यह सवाल उठना लाजमी है कि रूस और नॉर्थ कोरिया के बीच क्यों बढ़ रही है नजदीक? दोनों देशों के संबंधों के वैश्विक स्तर पर क्या मायने हैं? तो आज हम इसी विषय के कुछ महत्वपूर्ण सवालों पर चर्चा करेंगे। मगर सबसे पहले जान लेते हैं रूस और नॉर्थ कोरिया के रिश्तों का इतिहास कैसा रहा है और वर्तमान परिदृश्य में वैश्विक राजनीति इसका क्या असर देखने को मिलने वाला है ।
इतिहास और वर्तमान परिदृश्य
एशिया महाद्वीप के इस पूर्वी भाग में स्थित उत्तर कोरिया की सीमा, उत्तर में चीन और सुदूर पूर्व में रूस लगती है। साथ ही लगभग 155 मील लम्बी और करीब 2.5 मील चौड़ी भूमि की पट्टी है जिसे विसैन्यकृत क्षेत्र के रूप में जाना जाता है जो उत्तर कोरिया को दक्षिण कोरिया से अलग करती है। वही दो महाद्वीप में फैले देश रूस की बात करें तो इसकी सीमा यूरोप के फिनलेंड से लेकर एशिया के जापान से लगती है। भौगोलिक परिदृश्य से इतर राजनीतिक संबंधों की बात करें तो साल 1948 को नॉर्थ में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया की स्थापना हुई, जिसे नॉर्थ कोरिया नाम से जाता है।
हालांकि स्थापना के महज 2 साल बाद ही 1950 में कोरियन वार की शुरुआत हुई, जिसमें नॉर्थ कोरिया की सोवियत संघ और चीन ने सैन्य सहायता की तो दूसरी तरफ साउथ कोरिया की मदद के लिए अमेरिका आगे आया। हालांकि साल 1953 में संघर्ष विराम तो हो गया। लेकिन औपचारिक तौर पर लड़ाई खत्म नहीं हुई और नॉर्थ और साउथ कोरिया दो भागों में बंटे रहे। जहाँ अमेरिका साउथ कोरिया के साथ खड़ा नजर आया तो वही दूसरी ओर नॉर्थ कोरिया को सोबियत संघ का साथ मिला।
इसके 7 साल 1961 में दोनों देशों के मध्य मित्रता संधि हुई, जिसमें सोवियत संघ ने नॉर्थ कोरिया को सुरक्षा का भरोसा दिया। करीब तीन दशक तक दोनों देशों के बीच सब ठीक चला, लेकिन साल 1990 में तत्कालीन सोवियत संघ के सुप्रीम लीडर ने साउथ कोरिया को मान्यता दे दी और सोवियत संघ के इस कदम से नॉर्थ कोरिया – रूस संबंधों की नींव हिल गई। आगे चलकर 1995 में रूस ने नॉर्थ कोरिया संग अपनी मित्रता संधि तोड़ ली। दोनों देशों के बीच रिश्तों में आई तल्खी ने अब बड़ा रूप ले लिया था।
व्यापार और अर्थव्यवस्था
लेकिन समय में करवट ली और व्लादमीर पुतिन के हाथों में रूस की सत्ता आई जिसने नॉर्थ कोरिया संग संबंधों को एक नई दिशा प्रदान की। गौरतलब है कि पुतिन के आने के बाद दोनों देशों के रिश्ते सुधरते रिश्तों को मजबूत करने के प्रयास में 2014 में रूस ने नॉर्थ कोरिया पर बकाया कर्ज का 90 फीसदी हिस्सा माफ़ कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि यह कर्ज सोवियत यूनियन के दौर में लिया गया था। दुनिया से अलग थलग पड़े देश नॉर्थ कोरिया ने रूस यूक्रेन संघर्ष में रूस का समर्थन किया।
भूत से बाहर निकलकर मौजूदा समय में आते है और वर्तमान समय की बात करें तो रूस और नॉर्थ कोरिया दोनों देश फिलहाल एक ही नाव पर सवार हैं क्योंकि रूस के मित्रों की सूची बेहद छोटी है और यही हाल नॉर्थ कोरिया का भी है। साथ ही दोनों देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रकार के प्रतिबंधों का भी सामना कर रहे हैं क्योंकि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण इन देशों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भी गिरावट दर्ज की गई।
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
साथ ही बीते दिनों में हुए स्विटजरलैंड पी समिट में पश्चिमी देशों ने रूसी सम्पत्तियों को जब्त कर मिलने वाला ब्याज यूक्रेन को देने की घोषणा की जिससे रूस को एक बड़ा झटका लगा। कमोबेश यही हाल नॉर्थ कोरिया का भी है। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र के मना करने के बाद भी नॉर्थ कोरिया खतरनाक हथियारों का परीक्षण करता रहता है। जिसके कारण वह भी प्रतिबंधों के दायरे में है । अब ऐसी स्थिति में रूस और नॉर्थ कोरिया का सहयोगी बनना स्वाभाविक हो जाता है। दोनों देश आपसी सहयोग से अपना अपना हित साधने की कवायद में जुटे है ।
रक्षा और बदलते राजनीतिक परिदृश्य
अब इसे ऐसे समझिए कि यूक्रेन संग जंग में रूस के लिए पर्याप्त हथियार जुटाना मुश्किल हो रहा है, ऐसे में मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो नॉर्थ कोरिया उसकी मदद कर रहा है। वहीं एक रिसर्च के मुताबिक नॉर्थ कोरिया ने तोप के लगभग 50,00,000 गोले रूस भेजे हैं। इसके बदले रूस से कई आधुनिक तकनीकों की चाह नॉर्थ कोरिया को है।
इसके साथ ही हालिया हुए समझौते के अनुसार अगर किसी एक देश पर आक्रमण होता है और उसे युद्ध की स्थिति में धकेला जाता है तो दूसरे को सैन्य और अन्य सहायता प्रदान करने के लिए बिना किसी देरी के अपने निपटान में सभी साधनों की तैनाती करनी होंगी । गौरतलब है कि यह समझौता शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से मॉस्को और प्योंगयांग के बीच सबसे मजबूत संबंध साबित हो सकता है। मौजूदा हालातों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि दोनों देश वर्तमान समय में प्रतिबंधों के जाल में फंसे एक दूसरे की सहायता के साथ साथ दोनों देश नफ़ा नुकसान तौल कर अपना अपना हित साधने में जुटे हैं।
Read More : राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का वियतनाम दौरा
दुनिया में आगे की बात करें तो दूसरी अहम अंतर्राष्ट्रीय खबरों की जहाँ रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन उत्तर कोरिया के साथ रक्षा समझौता करने के बाद वियतनाम पहुंचे। साल 2017 के बाद पुतिन वियतनाम पहुंचे है। पुतिन के वियतनाम दौरे की अमेरिका ने निंदा की है, गौरतलब है कि यूक्रेन संघ युद्ध के बाद रूस कई प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। ऐसे में रूस उन देशों को सीधे तौर पर टारगेट कर रहा है। जिसके अमेरिका संग अच्छे संबंध नहीं हैं।
चीन ताइवान के संबंधों की तल्खी किसी से छिपी नहीं है। जहाँ बीते दिनों युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों और तटरक्षक जहाजों के साथ ताइवान को घेरते हुए चीन ने द्वीप पर नियंत्रण हासिल करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था तो वही दूसरी तरफ ताइवान के राष्ट्रपति ने चीन को जवाब देते हुए कहा कि ताइवान किसी भी प्रकार के दबाव के आगे नहीं झुकेगा। गौरतलब है कि चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, लेकिन ताइवान चीन से इतर खुद को स्वतंत्र राष्ट्र मानता है ।
वर्षों से दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस और चीन आमने सामने नजर आते रहते है । दरअसल चीन ने फिलीपींस पर दक्षिण सागर में मौजूद चीनी क्षेत्र में घुसने का आरोप लगाया तो वही दूसरी तरफ फिलिपेन्स ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त विशेष आर्थिक क्षेत्र में आता है और वह अक्सर 2016 के अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के फैसले का हवाला देता। जिसमें ऐतिहासिक आधार पर दक्षिण चीन सागर में चीन के व्यापक दावों को अमान्य करार दिया था। गौरतलब है कि दक्षिण चीन सागर तेल और गैस से समृद्ध है। हर साल लगभग तीन ट्रिलियन डॉलर का व्यापार इसके जरिए होता है।